फितरत
मौसम की तरह कैसे बदल जाऊं,
यह अदा तो मेरी फितरत नहीं है।
मेरा किरदार मेरी अमानत है,
कीच उछालो ये इजाजत नहीं है।
वक्त के थपेड़ों ने सूरत बदली,
आईना कहे वो सूरत नहीं है।
वादे भूल जाऊं मैं मुमकिन नहीं है,
मुझको भूलने की आदत नहीं है।
तड़प—तड़प जिए उनके तसव्वुर में,
वो कहते हैं कि मोहब्बत नहीं है।
कैसे मिलेगा सुकून उन्हें प्यारे,
जब सुकूं उनकी किस्मत में नहीं है।
नफरत करते हैं वो करें शौक से,
मुझको नफरत की जरूरत नहीं है।
सुख,शांति और मोहब्बत चाहिए,
कुछ और की अब हसरत नहीं है।
मुंह में राम और बगल में छुरी है,
यह मेरे प्रभु की इबादत नहीं है।
बहुत कुछ दिया है ईश्वर ने मुझे,
जिंदगी से अब कुछ चाहत नहीं है।
— प्रतिभा आर्य (अलवर)