” फितरत ” यार की
दर्दे सितम हैं के जो
थमने का नाम नहीं लेती
जख्मों को सीया बहुत,
ख़ुशी का जाम नहीं,,
किसको सुनाऊ मैं हाल ऐ दिल,
कोई मेरा महबूब नहीं
जी रही हुं के हु मैं जिन्दा,
इतनी भी मुझे सूध नहीं,,
बेकार पड़ी हूं कोने में,
फिर भी मुझे आराम नहीं
बहुत कुछ कर गए हम,
मगर किसी को कोई अहसान नहीं,,
आंसुओ का उमड़ा सैलाब,
कभी होठों पे मेरे मुस्कान नहीं
मरे को मारना ” फितरत ” यार की,
के दूजा कोई काम नहीं,,
बहुत किया बर्दास्त अब
सहने की ताकत नहीं
ना दर्द चाहिए ना सुकून
किसी ख़ुशी की चाहत नहीं,,
थक गयी इस ज़िंदगी से
ढलती जीवन की शाम नहीं,
टूट गए सारे ख़्वाब,
ज़िंदगी में कोई सपना नहीं,,
हर कोई मतलबी यार,
इस जहां में कोई अपना नहीं ,,
चले यारो, पीया जो ज़हर
वो अमृत का जाम नहीं
दर्द सितम हैं कि जो
थमने का नाम नहीं लेती ,,