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27 Oct 2017 · 1 min read

फितरत इंसानों की

भला कौन नहीं रहा इंसान के निशानों पर
मैंने खुदा को भी देखा है बिकते दुकानों पर

खुद की दौलत से खुश नहीं है अब यहां कोई
रखते हैं हर पल नजर दूसरों के आशियाने पर

दिल में भरा प्यार समझता नहीं कोई यहां
यकीन अब सबको होता है यहां दिखाने पर

संभल के चलना अब हर राह पर मेरे दोस्त
क्या पता कब आ जाए तू किसी के निशाने पर

पैमाना लेके इंसानियत का निकला था मैं आज
कोई न मिला मुझे जो खरा उतरा हो पैमाने पर

सोचा था लौटा लाऊँगा गलत राह से मेरे दोस्तों को
मैं गलत था, माना न कोई मेरे लाख मनाने पर

निकले थे कुछ लोग समझाने कीमत जिंदगी की
पर उनकी बात को एक भी न समझा इतना समझाने पर

कहने वाले वक्त पर कभी साथ नहीं देते-ए-कुमार
हकीकत पता चलती है सबकी आजमाने पर

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