फिजाँ में फूलों का ,कोई रहबर तो हो
फिजाँ में फूलों का कोई रहबर तो हो
जहां में नम आँखों का कोई रहबर तो हो
चीरहरण को झेलती जवाँ आँखें
ए मेरे खुदा इंसानियत का कोई रहबर तो हो
फिजाँ में फूलों का कोई रहबर तो हो
जहां में नम आँखों का कोई रहबर तो हो
चीरहरण को झेलती जवाँ आँखें
ए मेरे खुदा इंसानियत का कोई रहबर तो हो