फालतू की शान औ’र रुतबे में तू पागल न हो।
गज़ल
2122/2122/2122/212
फालतू की शान औ’र रुतबे में तू पागल न हो।
क्या पता जो पास तेरे आज है वो कल न हो।
जिस खुशी को देखने के वास्ते बेताब सब,
कौन जाने जिंदगी में वो खुशी का पल न हो।
कुर्सी के खातिर कहां तक गिर गये हैं या खुदा,
राजनीतिक गंदगी का और अब दलदल न हो।
बच्चों को खाने में पिज्जा और बर्गर चाहिए,
भूल से लौकी तरोई कद्दू औ’र परवल न हो।
दिल समंदर सा हिलोरें मारता प्रेमी तेरा,
प्यार है कैसा वो जिसमें दिल में इक हलचल न हो।
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी