फादर्स डे
लघुकथा
फादर्स डे
“क्या बात है बेटा, आज इतनी सुबह-सुबह कैसे उठ गए ?” अपने चौदह वर्षीय पुत्र से उसके पिता ने पूछा।
“पापा, आपको तो पता ही है कि आज फादर्स डे है, साथ ही योगा डे भी। आज दिनभर सोसल मीडिया में बस इसी की धूम रहने वाली है। इसीलिए मैं आज आपके साथ मॉर्निंग वॉक और योगा करते हुए कुछ फोटो खिंचवाऊँगा और सोसल मीडिया पर पोस्ट करूँगा।” बेटा बहुत ही उत्साहित स्वर में बोला।
“बेटा, इस प्रकार दिखावा करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा। योगा या फादर्स डे पर 8-10 फोटो खींच लेने से कुछ नहीं होने वाला। साल के पूरे तीन सौ पैंसठ दिन फादर्स डे ही होते हैं। इसी प्रकार योगा भी हर दिन करने चाहिए।” पिताजी ने अपने बेटे को प्यार से समझाया।
“हाँ, सो तो है पापा। पर आप तो जानते हैं कि…” बेटा सफाई देने लगा।
“बेटा, मैं सब जानता हूँ। मेरे साथ फोटो ही खिंचवाना चाहते हो न, तो आज नहीं, अगले साल इसी दिन खिंचवा लेना। चलो, आज से शुरू करते हैं मॉर्निंग वॉक और योगा। मैं तुम्हें रोज सुबह अपने साथ गार्डन ले जाया करूँगा। आधे-पौन घंटे की ही तो बात है। अगले साल तक तो तुम बहुत कुछ सीख चुके होगे।” पिताजी ने इतने प्यार से कहा कि बेटा मना नहीं कर सका।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़