फागुन की अंगड़ाई
मधुमास की खुशबू बिखरने लगी है
किंशुक कुसुम से चमकने लगी है
आमों की बौरों से गमकने लगी है
कोयल की कूक से चहकने लगी है
सखी साजन अभी तक नहीं आये
नैन प्रीतम की राह तकने लगे हैं
सनम बेवफा परदेश गये ही क्यों
दिल में एक हूक सी उठने लगी है
फागुन ने ले ली है अंगड़ाई
सही नहीं जाती अब बेवफाई
पपीहा सी रटती पी कहाँ पी कहांँ
ओम सोलह श्रृंगार से सजने लगी है
ओमप्रकाश भारती ओम्
बालाघाट, मध्य प्रदेश