फ़ितरत नहीं बदलनी थी ।
फ़ितरत नहीं बदलनी थी उसकी,
पहली मुलाक़ात मे जो दिखी थी,
एक ना एक दिन स्वतः बाहर आना था,
हकीकत मे जो अंदर छुपी थी,
उम्र कितनी भी गुजर जाए रह कर साथ,
बदलने की हर नाकाम कोशिशें कर जाओ,
बदल जाएगी प्रकृति परिवर्तन के साथ,
फ़ितरत नहीं बदलती किसी की कभी,
आ ही जाती है प्रत्यक्ष अनंत गहराईयों से,
कोई समझ ही नहीं सकता कब बदला सख्श,
यक़ीनन होगा नहीं विश्वास शाश्वत सत्य है बात,
फ़ितूर लेगी जन्म अमृत विष नहीं बन सकती ,
फ़ितरत कहते है इसी को ,
आपके विश्वास के साथ दग़ाबाज हो जाए।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।