फ़ाइलें
दलीलों में फँसी
अट्टालिकाओ से ऊँची
आकाश छूती,
ये सरकारी दफ़्तर की फ़ाइलें
अन्फ़ासो में धंसी
काग़ज़ी सलवटों में फँसी
दीवारों से सटी
धूल से अटी
एक दूसरे से पिचकी
एक दूसरे में चिपकी
ये सरकारी दफ़्तर की फ़ाइलें
कैसे लौटाओगे
वो बीती ज़िंदगियाँ
जो गुज़र गयी
चप्पलों की रेत बनके,
कैसे साफ़ करोगे
नुकीली कीलों से टपकती
नाख़ूनों की काली मिट्टी,
कैसे साफ़ करोगे
कैसे मिटाओगे
चेहरे की झाइयाँ
आँखो का निचाट ख़ालीपन
कैसे उठाओगे
सूखे होंठों की गिरती पपड़ियाँ
जो चिपकती है तलवों में
पिघलते पैरों के छालें बन पिचकती हैं
कैसे बचाओगे उन कौए से
जो छीनते मुँह के निवाले
जिनके थी ज़िंदगी हवाले
कैसे संभालोगे
दर दर की ठोकर खाते
उन जज़्बातो को
ज़िंदगी की अवसन्नता को
जो दफ़्न है इन फ़ाइलों में
कमबख़्त हज़ार का नोट कहाँ से लाऊँ
जो इन फ़ाइलों में जान भर दे?
@संदीप