फर्क
फर्क
अनपढ़ थे जब लोग बाग
होता था तर्क
शिक्षित कहलाने वाले अब
करते हैं कुतर्क
अनपढ़ थे जब लोग बाग
मर्यादा की एक रेखा थी
अपने पति छोड़कर कभी
ना काहु को देखा जी
शिक्षित हुए जब लोग बाग
स्वतंत्र हुये हैं सब नार
छुट दिया है कानुन उनको
निजी जीवन का अधिकार
जब चाहे, जायें कहीं पर
करले किसी से प्यार
दोष नही,जब चाहे तलक
निज पति को दे दुत्कार
तर्क करते करते-करते अब
होने लगी है कुतर्क
बुढ़े और बच्चों में है हरदम
इसी बात का फर्क
बुढ़े जाते थे बहु खोजने
खोजता था ननिहाल
खोजते खोजते खोज लेता था
लड़की का पुर्ण हाल
बदल गया है जमाना अब
बाप को मिलता अधिकार नहीं
खोज रहे है बेटा पत्नी
बेटी को भी मिला संस्कार नहीं
चलना चलाना हमको है,
मां बाप तो मर जाएंगे
वाह रे जमाना कलयुग का
बढ़ चढ़ कर कुतर्क बतायेंगे
भर देते हैं बाप के सामने
गुड़ के संग मा अर्क
प्रेम विवाह के वास्ते लोगन
करनें लगे हैं कुतर्क
बाप बेटा के महायुद्ध में
होने लगी है कुतर्क
तर्क कुतर्क मध्य अब आई
बस इसी बात का फर्क
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग