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31 Oct 2021 · 1 min read

फर्क

होती नहीं इस जहाँ में दोस्तों!
इंसानों की एक सी फितरत ।

दिखाई देता है जो रूबरू आपको ,
मगर कुछ और ही है हकीक़त ।

कुदरत है हैरान और खुदा भी ,
कहाँ है छुपी इसकी असलियत ।

उसने तो बनाया सबको एक सा ,
और एक सी भरी दिलों में मुहोबत।

मुहोबत की तो बात ही छोड़ो दो ,
बची कहाँ रह गयी है इन्सानियत ।

रूह एक थी मिटटी भी एक थी ,
फिर क्यों बदल गयी इसकी सीरत ?

उसने तो नहीं बनाये थे दरो-दिवार ,
फिर कहाँ से आई तकसीम की आदत?

यह वोह इंसान ही नहीं जाने कौन है ?
बदली इस दौर में इंसा की शख्सियत।

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