फर्क है
फर्क है लूट और कमाई में,
दारू और दवाई में ।
नगाडे और शहनाई में ।
दुश्मन और भाई में ।
मिलन और जुदाई में
जून और जुलाई में ।
सस्ता और महंगाई में ।
बदनाम और अच्छाई में ।
सब होते नहि एक से
होते गुण है अनेक।
फर्क समझिए साफ है ।
सुंदर है संदेश ।।
✍ विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र