फर्क है जरा सा
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#फर्क है बस जरा सा…..
इसलिए #संतुलन जरूरी है।
लाड़ और मोह में,
भोजन और भोग में,
भक्ति और पूजा में,
धर्म और आस्था में,
ग्रंथ और गाथा में,
फर्क है…..
सच और दिखावे में,
ओज और दिव्यता में,
सुंदर और भव्यता में,
घर और मकान में,
सन्नाटे और एकांत में
मंदिर और भगवान में,
फर्क है…..
उम्मीद और विश्वास में,
भरोसे और आस में,
मां और सास में,
व्यंग्य और हास्य में,
घृणा और नापसंदगी में,
स्वतंत्र और स्वछंदगी में,
फर्क है…..
प्रेम और वासना में,
भूख और तृष्णा में, (क्षुधा,हवस)
ज्ञान और समझ में,
चुप्पी और मौन में,
दिलासा और राहत में,
लालसा और चाहत में,
दुख और आहत में,
फर्क है…..
आज्ञाकारी और जीहुजूरी में,
साहस और(दुस्साहस) सीनाजोरी में,
बंधन और गुलामी में,
मानसून और सुनामी में,
बंदिश और अनुशासन में,
पहचान और सम्मान में,
फर्क है…..
कंजूसी और मितव्ययता में,
कमजोरी और दुर्बलता में,
तर्क और जवाब में,
समूह और समाज में,
डर और लिहाज में,
चादर और लिहाफ में,……
फर्क है,
फर्क है, बस जरा सा ….
इसलिए ……………संतुलन जरूरी है,
#हां, ……. संतुलन बेहद जरूरी है।
________ मनु वाशिष्ठ