फटा आँचल- जली रोटी
२२)
“ फटा आँचल- जली रोटी “
माँ रोटी दो
बच्चा भूख से बिलबिलाता है
तंगहाल कोठरी की छत से
इंद्र देवता पानी बरसाता है
गीली लकड़ी , ठंडा चूल्हा
और तवे पर पड़ी रोटी
रोटी सँभाले कि संभालें चूल्हा
इसी में थी जली रोटी
धाड़ मार रोया बेटा
और फट पड़ी माँ
जैसे था फटा उसका आँचल
तन ढाँपे या भूख मिटाये
आँखों से बरसे है गंगाजल
कैसी है ये लाचारी
क्यों आई विपदा भारी
दौड़ी और बच्चे को छाती से लगाया
आँखों के आँसू से उसका मुँह भिगाया
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता इंदौर