*फँसे मँझधार में नौका, प्रभो अवतार बन जाना 【हिंदी गजल/ गीतिक
फँसे मँझधार में नौका, प्रभो अवतार बन जाना 【हिंदी गजल/ गीतिका】
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(1)
फँसे मँझधार में नौका ,प्रभो पतवार बन जाना
मिटाने कष्ट भक्तों का, प्रभो अवतार बन जाना
(2)
सताएँ जब भी जग के कष्ट ,काँटों की तरह मुझको
प्रभो तुम हाथ में ले पुष्प ,मेरा प्यार बन जाना
(3)
हमेशा सत-असत में युद्ध, चलता ही रहा अब तक
बचाने सत्य को हर बार, तुम अंगार बन जाना
(4)
लगे जब आँकने जग ,मित्रता धन की तराजू पर
सुदामा के लिए द्वापर का, तुम सत्कार बन जाना
(5)
बचा लेना हमेशा, द्रोपदी की लाज दुष्टों से
छिड़े जब युद्ध तो फिर, सारथी-हथियार बन जाना
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451