प्रेरणा
घोर अँधेरा मत रुकना मन,
पथ पर दीप बनेंगे तारे,
माँझी थामें पतवारों को,
आते चल फिर आप किनारे,
उतरें सागर में जो मोती,
माणिक लेकर आते बाहर-
खड़ा वही हो सकता गिरकर,
जो गलती को जान सुधारे।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)