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22 Apr 2021 · 1 min read

प्रेयसी

इस हृदय के यवनिका पर ,
जो छपी तस्वीर तेरी।
है हृदय हर्षित उसी से,
और हां तकदीर मेरी।

देखिए कुस्मित हुई है,
आज मन कि वो धरा भी
जो कभी बंजर थी,
प्यारे! हो गई है उर्वरा भी।

ये सकल अवधारणा है,
प्रेम में परिणय मिलन पर।
छोड़ती है प्रश्न निश्दीन ,
नव प्रेमियों के आकलन पर।

मन विकल हो खोजता है ,
बस तुम्हें प्रतिपल समन्वय
मैं भला हूं सूर्य किंतु
,चाहता हूं तुझमें उदय ।

©®दीपक झा रुद्रा ❤️

Language: Hindi
1 Comment · 440 Views
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