प्रेम
✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️
🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹
मेरे द्वारा स्वरचित एवं स्वमौलिक चौथी कविता :-
विषय – प्रेम
प्रेम ईश्वर है ,प्रेम शाश्वत है ,प्रेम आकार से परे है…
जिस्म का प्रेम -प्रेम नहीं एक भूख एक जरुरत है…!
असली प्रेम है एक दुसरे के दर्द को समझना -अहसास को समझना -भावनाओं को समझना…
प्रेम ईबादत है -प्रेम भक्ति है -प्रेम श्रद्धा और समर्पण है…!
प्रेम श्रंगार है -प्रेम रस है और प्रेम ही पूजा है…
प्रेम से दो पराये -दो मुल्क एक हो जाते हैं…!
प्रेम गंगाजल की तरह पवित्र है…
प्रेम है तो जीवन में रंग है वर्ना जीवन बेरंग है…!
प्रेम एक बहती हुई धारा है…
जिसमें नहा कर व्यक्ति पवित्र हो जाता है…!
Affirmations :-
1-मेरी मेहनत रंग ला रही है…
2-मेरी जीवन के प्रति उतेजना बढ़ती जा रही है …
3-मैं अंदर से खुश हूँ और खुल कर हँसता हूँ…
4-मैं जब वायदा करता हूँ तो पूरा भी करता हूँ…
5-मैं हमेशा बड़ो का आदर करता हूँ …
6-मेरा एक एक दिन अच्छा होता जा रहा है…
7-मैं अपने जीवन में खुश हूँ जो कुछ भी भी मेरे पास है।
बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ….सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ….!
🙏सुप्रभात 🌹
आपका दिन शुभ हो
स्वरचित स्वमौलिक
विकास शर्मा'”शिवाया”
🔱जयपुर -राजस्थान 🔱