प्रेम
प्रेम
प्रेम ही जीवन है।
प्रेम ही मृत्यु है।
प्रेम ही आनंद है।
प्रेम ही दु:ख है।
प्रेम ही उत्साह है।
प्रेम ही निराशा है।
प्रेम ही आकर्षण है।
प्रेम ही विकर्षण है।
प्रेम ही शांति है।
प्रेम ही अशांति है।
प्रेम ही वासना है।
प्रेम ही साधना है।
प्रेम ही दैहिक है।
प्रेम ही आत्मिक है।
प्रेम ही भौतिक है।
प्रेम ही दैविक है।
प्रेम ही संसार है।
रामा प्रेम ही प्रेम है।
स्वरचित © सर्वाधिकार रचनाकाराधीन
रचनाकार-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।