प्रेम
गीत…(प्रेम)
देखकर मुझको थोड़ा सा जो मुस्कराने लगे
धीरे- धीरे वो मेरे दिल में उतर आने लगे …
जाने कैसा असर था मुझपे उन निगाहों का
देखने लग भी गया ख्वाब उनकी बाहों का
गीत फिर हम भी एक मन में गुनगुनाने लगे
धीरे- धीरे वो मेरे दिल में उतर आने लगे….
एक एहसास मुहब्बत का फूल बनके खिला
जाने क्यों ऐसा लगा जैसे मै पहले भी मिला
वो भी घर की तरफ से रोज आने-जाने लगे
धीरे- धीरे वो मेरे दिल में उतर आने लगे…
रूप उनका था बड़ा सौम्य जैसे हो दर्पण
मैंने भी कर ही दिया मन को अपने अर्पण
बैठकर पास मेरे मुझसे ही शरमाने लगे
धीरे- धीरे वो मेरे दिल में उतर आने लगे…
खुशबुओं से महक उठा है सारा ही उपवन
राग रस घोलता हर मन में बह रहा है पवन
हाथ में फूल लिए मुझपे वो बरसाने लगे
धीरे- धीरे वो मेरे दिल में उतर आने लगे….
देखकर मुझको थोड़ा सा जो मुस्कराने लगे
धीरे- धीरे वो मेरे दिल में उतर आने लगे…
डाॅ. राजेन्द्र सिंह “राही”
(बस्ती उ. प्र.)
स्वलिखित एवं मौलिक