प्रेम
ऐसा प्रेम मधुर हो जिसको,
याद करे यह दुनिया सारी।
प्रेम नहीं पर्याय स्वार्थ का,
नहीं करो तुम इसको विकृत,
ऐसा प्रेम दिखाओ करके,
अंतर्तम करता हो स्वीकृत !
सीमाओं में बंध न सकी है,
प्रेम शब्द की अनुपम शक्ति,
ना गुलाब में बिकने वाली,
यह अनमोल एक अभिव्यक्ति !
भूल गए निज मर्यादाएं,
आज प्रेम-परिभाषा न्यारी,
ऐसा प्रेम मधुर हो जिसको
याद करे यह दुनियां सारी !१!
प्रेम नहीं प्रतिफल का ग्राही,
यह अटूट एक ऐसा नाता,
बिना लेखनी और पुस्तक के,
अंतःकरण स्वयं ही गाता !
प्रेम एक अहसास मधुर है,
समझ न इसको क्षणिक वासना,
एक दिवस का हेतु नहीं यह,
सतत रहे जीवन का गहना !
विश्व-गुरु के सिंहासन पर,
पश्चिम- प्रेम पड़े ना भारी,
ऐसा प्रेम मधुर हो जिसको,
याद करे यह दुनियां सारी !२!
चिरजीवी इतिहास प्रेम का,
राधा से लेकर मीरा तक,
जिनको डिगा न पाया कोई,
उस अम्बर से वसुंधरा तक !
शुद्ध बुद्धि का प्रेम अखंडित,
नहिं उधृत हो शब्द-शिला से,
पश्चिम के इस अंधतमस में,
मिथ्या कपट न हो अबला से !
पुनः प्रेम-परिभाषा गढ़ने,
आओ गोवर्धन गिरिधारी,
ऐसा प्रेम मधुर हो जिसको
याद करे यह दुनियां सारी !३!
गोविन्द जी के शहजादों ने,
प्यार किया जब देश-धर्म को,
स्वयं समर्पित बलि वेदी पर,
बता गए थे प्रेम-मर्म को !
नवम और दसमेश पिता की,
याद रहे वह श्रेष्ठ प्रेरणा,
कुटुंब किया सर्वस्व निछावर,
ऐसी विकट असह्य वेदना !
स्मरण रहें छंद नानक के,
मानवता थी जिनको प्यारी,
ऐसा प्रेम मधुर हो जिसको
याद करे यह दुनियां सारी !४!
– नवीन जोशी ‘नवल’
बुराड़ी, दिल्ली