#कविता//प्रेम
#प्रेम
प्रेम कहूँ रूहों का मिलना , जुड़ना ख़ुशबू फूलों का।
भूल हुई तो मान सुधारे , वो है दोस्त उसूलों का।
बेचैन करे दूरी दिल को , मिलने को मन इतराए।
दीद हुआ हँस गले लगाया , प्रेम यही तो कहलाए।
त्याग भरा हो मन में जिसके , रीत प्रीत की जो जाने।
ख़ुद से ज़्यादा चाहे यारी , प्रेम वही है पहचाने।
पत्थर पर वचन लकीरें हों , सौदा हो सच्चाई का।
प्रेम वही ज्यों होता प्रीतम , साथ ज़िस्म परछाई का।
वैभव पाकर ऐंठ रहा जो , ख़ून नहीं वो इंसानी।
हीरा ले मानवता भूले , करता है वो नादानी।
झूठी बातें लूटी रातें , हवश लिए जो इठलाया।
एक कलंक कहूँ मैं उसको , मिटे जगत् से छल माया।
#सर्वाधिकार सुरक्षित सृजन
#कवि आर.एस.’प्रीतम’