प्रेम
प्रेम
कमल नयन कहते है तेरे
ऐसे मोहे पनघट पर ना छेड़ें।
विभूषित सुभाषित हर एक कण हुआ है,
आज हृदय में एक प्रतिबिंब बना है
।
टीस मची एक दर्द हुआ है,
क्या सचमुच मुझे भी प्रेम ने छुआ है।
मदमाती,इतरातीं थी किसी की बात में ना आती थी,
तेरे तिरछे नैनों ने एक क़तल करा है
हाँ हाँ सचमुच मुझे भी इश्क़ हुआ है
सूफियाना सा मिज़ाज हुआ है
शायराना सा अन्दाज़ हुआ है
दिल तेरे पहलू में आकर पहली बार बीमार हुआ है।
अँखियाँ तेरे नूर को तरसे
दिन रात ना जाने कितना बरसें
एक बात बताना सच्ची सच्ची
क्या तुम्हें भी ये रोग हुआ है?
डॉ अर्चना मिश्रा