प्रेम (3)
कितना ज़रूरी है,
किसी कली को
पनपने के लिए,
किसी और कली
का फूल बनना ,
फिर मुरझाना और
फिर डाली से
विलग होकर
भूमि पर गिर,
नष्ट कर देना
अपना समूचा अस्तित्व ?
क्या ? कभी
किसी ने भी
सोचा है,तनिक भी
गहराई से कि-
इस समूची प्रक्रिया में,
कितनी करूणा है ?
कितना प्रेम है. ?
-ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
कवि एवं शिक्षक।