*प्रेम*
प्रेम किया नहीं जाता बस हो जाता है।
सच है,यही प्रेम की असली परिभाषा है।।
प्रेम कोई भेदभाव करता नही है कभी।
वो समान हर जगह रहता सदैव है।।
प्रेम झोपड़ी में पले या पले वो राजमहल।
हर जगह पे एक जैसी भावना का मेल है।।
प्रेम अगर आता जीवन में तो बसंत सा आता।
जाता है जब ये जीवन को पतझड़ सा कर जाता।।
सुंदरता प्रेम के लिए ना कोई बाधा है।
रूप और कुरूप का ना इससे कोई नाता है।।
प्रेम जिससे हो गया है, फिर ना कोई भाता है।
इसीलिए प्रेम में घनत्व सबसे ज्यादा है।।
होश और बेहोशी के बीच डूब जाता है।
यही तो खुमारी है,प्रेम जिसको लाता है।।
प्रेम में अच्छाई और बुराई का ना कोई मोल।
एक साथ दोनों को प्रेमी अपनाता है।।
प्रेम सिर्फ देता है, मांगता वो कुछ भी नहीं।
प्रेम तो समर्पण ही हमको सिखाता है।।
प्रेम में तो सारे भाव एक साथ छुपे हुए।
दुख में भी सुख का ये अनुभव कराता है।।
कृष्ण मिले गोपियों को, प्रेम का समुद्र मिला।
विरह में भी गोपियों को, प्रेम नजर आता है।।
सीता गईं राम संग, वन में भटकती रहीं।
ऐसा भाव और कौन प्रेम ही सिखाता है।।
उर्मिला के प्रेम का तो, क्या बखान करूं यहां।
तड़प में भी प्रेम लिए चौदह साल काटा है।।
✍️ प्रियंक उपाध्याय