प्रेम
शीर्षक – प्रेम.…. शाश्वत है
…
प्रेम तो बस मनभाव हैं।
सच और फरेब नहीं हैं।
जिंदगी में सच प्रेम हैं।
प्रेम दीवानी मीरा बाई हैं।
हां राधा रानी का प्रेम है।
ईश्वर स्वयं प्रेम करते हैं।
सच तो शाश्वत प्रेम हैं।
हम सभी जानते हैं।
जीवन में प्रेम बना है।
तब ही तो हमें प्रेम हुआ है।
एहसास और एतबार प्रेम हैं।
दिल और मन से प्रेम बना है।
हम तो सिर्फ शब्द कहते हैं।
सच प्रेम में तो इतिहास बना है।
***††******************
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र