प्रेम
प्रेम को फूल कैसे कह दूँ
प्रेम तो खुशबू है
जो कभी मुरझाती नहीं
अपनी राह भुलाती नहीं।
कैद भी हो जाये अगर
तो कोई बात नहीं
कहीं न कहीं से
आखिर वो बाहर आएगा
तीनों लोकों का स्वामी बनकर
दसों दिशाओं में
फिर से वो फैल जाएगा।
प्रेम होता है
सागर से भी गहरा
हिमालय से भी ऊँचा
आसमान से भी विशाल
सूरज से भी चमकीला
जैसे अनूठा सतरंगी हीरा।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
बेस्ट पोएट ऑफ दि ईयर।