प्रेम
प्रेम की परिभाषा नहीं इतनी सरल है
सागर से भी गहरा यह प्रेम रंग हैं
प्रेम पवित्र ह्रदय की गहराई
अन्तर मन में बहती निर्मल धारा
विरहिणी करें विरह अग्नि में तप कर
पतंगा और बाती का अटल प्रेम
चातक का स्वाति नक्षत्र से अगाध प्रेम
जीवन में इन्द्रधनुष सा प्रेम रंग
सुने उपवन में बसंत सा प्रेम
मीरा बनी जोगन गिरधर की
गोपीयन संग गिरधर नागर का प्रेम
आत्मा वह ईश्वर का पवित्र प्रेम
सरल सरीखी प्रेम रस धारा
प्रेम रस अविरल प्रवाह धारा ।
नेहा