प्रेम
उसने चुपके से आके पूछा कि धृति कभी मेरे बारे लिखेगी तो क्या लिखेगी ?
मैंने मुस्कुराते कहा कि,
हुस्न की जान हों तुम,
मेरे रूह-ए-सुकून हों तुम,
ज़ख़्म के मरहम हों तुम,
सच कहूँ तो मेरी शिद्दत-ए-इश्क़ हों तुम
कैसे बयान करूँ मेरे लिए क्या हों तुम?
माना कि गुलाब कि फूल मुझे पसंद हैं,
चुन चुन के तुमने मेरे लिए लाए हैं,
मगर जब तुम मेरे रूह में यू महक जैसे जो बस गए हों,
यह सारी गुलाब की अब क्या करूँ में?
खुशबुदार गुलाब से भी महकने लगे तुम,
यकीन मानों! मेरे लिए तो पूरे बगीचे हों तुम ;
अब यह दूसरे गुलाब से क्या करूंगी में ?
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