प्रेम
प्रेम के आदी है हमसब, मां प्रेम से ही पहचानी गई।
प्रेम के कारण ही सुदामा और मीरा जगजानी भई।।
प्रेम के कारण ही खाए थे, राम ने शबरी के बेर।
प्रेम खातिर कर दिया था, राम ने रावण को ढेर।।
प्रेम के खातिर ही मांझी ने, पूरे पहाड़ को काट दिया।
जिसके कारण प्रेम छिना था, दो हिस्सों में बांट दिया।।
अपना प्रेम जन्म लेता है, त्याग और बलिदानों से।
क्या हमको है प्रेम सीखना, मुल्ला और पठानों से।।
प्रेम समर्पण प्रेम है पूजा, प्रेम प्रकृति का तर्पण करता।
प्रेम वही जो बड़े प्रेम से, प्रेम को सब कुछ अर्पण करता।।