प्रेम है जब तक अमृता है तब तक
जब तक प्रेम जिंदा है
अमृता भी जिंदा रहेगी
साहिर की जूठी सिगरेट चुनते हुए
छुप छुप कर उसे फूंकते हुए
धुएं के गोल छलले में
साहिर की धुंधली तस्वीर देखते हुए
कहीं इमरोज भी होगा
जो किसी दिन किसी अमृता के
मन आंगन में उग आयेगा
बेला की तरह
अपनी मीठी खुशबू से मन के
कोने कोने को कर जाएगा तरो ताजा
और चुप चाप सुनता रहेगा
अपने प्यार के होठों से
उसके प्यार से पहली मुलाकात की
मिलों फैली खामोशी को
और हां … साहिर भी होगा
ठीक अमृता और इमरोज के बीचों बीच
कभी इमरोज के पीठ पे मुस्कुराएगा
कभी अमृता के शब्दों से छलक जाएगा
प्यार कहां आज कल या परसों में बांधता है
ये अलग बात… सभी प्यार कहानियां नहीं बनती
~ सिद्धार्थ