प्रेम ही जीवन का आधार !
प्रेम ही जीवन का आधार !
प्रेम ही जीवन का आधार,
प्रेम नहीं तो फीका ये संसार।
जीवन का बस इतना ही सार,
आपस में हो स्नेह और प्यार।
प्रेम में राधा हुई थीं दिवानी,
कान्हा संग करतीं आनाकानी।
प्रेम में सीता अपना सुख हारीं,
फिरी राम संग वन में मारी मारी।
प्रेम में सुध बुध खोकर मीरा,
विष का प्याला पी जाती है।
लाख जतन करता हर कोई ,
गिरिधर के ही गुण गाती है।
प्रेम में जोधा के, अकबर हारे,
महल के भीतर मंदिर बनवाए।
प्रेम में, धर्म के सब बंधन टूटे,
मुसलमां होकर बुत पुजवाए।
प्रेम न जाने मजहब की लकीर,
प्रेम में खोए राजा पीर फ़कीर।
प्रेम से ही जागृत यह संसार है,
प्रेम नहीं तो जीवन बेकार है।