प्रेम मोल….
II छंद – उल्लाला II
कान्हा नयन बह रहे, सुदामा चरण धुल रहे I
निर्मल छवि ये देख के,सब लोक धन्य हो रहे II
प्रेम मोल अनमोल है, जो प्रेम ही आंक सके I
तंदुल में मोहन बिके, जो त्रिलोक न तोल सके II
\
/सी. एम्. शर्मा
II छंद – उल्लाला II
कान्हा नयन बह रहे, सुदामा चरण धुल रहे I
निर्मल छवि ये देख के,सब लोक धन्य हो रहे II
प्रेम मोल अनमोल है, जो प्रेम ही आंक सके I
तंदुल में मोहन बिके, जो त्रिलोक न तोल सके II
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/सी. एम्. शर्मा