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11 Apr 2020 · 3 min read

प्रेम प्रतीक्षा भाग 2

प्रेम – प्रतीक्षा
भाग-3
जैसा कि सुखजीत का गाँव का विद्यालय दसवीं तक का था और उसे आगामी पढाई हेतु गाँव से बाहर के विद्यालय में दाखिला लेना था,क्योंकि उसके पिताजी को भी पल्लेदारी करने हेतु शहर जाना पड़ता था, इसलिये उसके पिताजी जी ने दोनो पिता-पुत्र की सुविधा को देखते हुए शहर में ही किराये के मकान में पलायन की योजना बना रखी थी।
आखिरकार दसवें परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ और आशा स्वरूप सुखजीत ने गाँव के विद्यालय में मैरिट हासिल करते हुए दसवीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया।आस पड़ौस और घर परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे।योजनास्वरूप सुखजीत के पिता जी परिवार सहित शहर में आ गए थे और उसका दाखिला विज्ञान संकाय में ग्याररहवीं कक्षा में करवा दिया।आरम्भ में विद्यालय में सुखजीत अकेलापन महसुस कर रहा था, क्योंकि उसके संगी साथी गांव में ही रह गए थे।
उसने नियमित रूप से विद्यमान में जाना शुरू कर दिया था।जैसाकि वह प्रतिभाशाली था,सो धीरे धीरे उसने विद्यालय में अपनी हरफनमौला प्रतिभा के बल पर अपना प्रभाव छोड़ना शुरु कर दिया था और विद्यालय के अध्यापकगण और विद्यार्थी उसको अच्छा विद्यार्थी समझते थे और विद्यालय में उसको छात्रवृत्ति, किताबें इत्यादि के रूप में विशेष सुविधाएं प्रदान की गई थी।कम समय में उसने अपने सर्वांगीण गुणों और प्रतिभा के बल पर अच्छा प्रभाव जमा लिया था।
इसी दौरान उसकी कक्षा में एक लड़की ने भी दाखिला लिया था, जिसका नाम अंजलि था।वह छरहरे बदन,दरम्याने कद एवं गोरे रंग की बहुत ही सुंदर लड़की थी,जिसका रूप यौवन एवं व्यक्तित्व स्वचालित सा अफनी ओर आकृष्ट कर देने वाला था।जैसे ही उसने पहली बार कक्षा में प्रवेश किया, सभी छात्रों की आँखे अकस्मात खुली की खुली रह गई।उसकी ड्रेस सैंस से यही लग रहा था कि वह एक संपन्न और प्रभावी परिवार से संबंध रखती होगी।और वह फिर महक के साथ.बैंच पर खाली पड़ी सीट पर तशरीफ रख ली।सुखजीत का ध्यान भी उस ओर गया था, लेकिन उसनें ज्यादा तवज्जों ना देते हुए अपना ध्यान उस ओर से हटा लिया था,लेकिन चार सौ चालीस वॉट का झटका तो उसे भी लगा था।लेकिन उसनें स्वयं को नियंत्रित कर ही लिया था।
सारी छुट्टी की लंबी घंटी बजी और घंटी की ध्वनि कानों में पड़ते ही सभी विद्यार्थी कक्षाओं से घर जाने के लिए ऐसे छूटे, जैस कि जेल से एक साथ कई कैदी रिहा हुएं हों और सभी अपनी अपनी दिशाओं में घर जाने के लिए अपने अपने साधनों से घर के लिए निकल पड़े।
सुखजीत ने भी अपनी पुरानी सी साईकल उठाई और वह भी दोस्तों के साथ घर के लिए निकल पड़ा।जैसे ही वह घर के पास वाले मोड़ पर पहुंचा तो आंजलि ने पीछे से आगे आते हुए तेजी से उस ओर बिना देखे उसकों क्रोस कर लिया था, जिसे देख कर वह आचंभित रह गया था ,लेकिन इससे उसको यह स्पष्ट हो गया था कि वह उसी की कॉलोनी में कहीं आस पास ही रहती होगी।विशेष ध्यान ना देते हुए वह भी अपने घर पहुंच गया।घर पर पहुंचते ही बैग रख कर हाथ पैर धो कर खाना खाकर थोड़ी देर सुस्ताने के बाद वह पढने के लिए बैठ गया।

कहानी जारी……।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
420 Views
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