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19 Oct 2019 · 1 min read

प्रेम पीड़ा

ईश्क की आँधी तुफान संग
अंबर में प्रेम मेघ मंडराते हैं
अनुरागी बूंदों में जब बरसेंगे
चातक कब से आस लगाए हैं

यह झुकी झुकी निगाहें हैं जो
कुछ कहती हैं तनिक बुझो तो
प्रेम जाल में हैं जो फँसी फँसी
अहेरी अहेर में फँसाने आए हैं

प्रणय तीव्र हवा का झोंका सा
पल भर में जो गुजर जाता है
मिलता है तो कभी तरसाता हैं
आँखों में स्वप्न खूब सजाए हैं

गुलिस्तां है यहाँ खिला खिला
महकान में मधु हैं मिला मिला
प्रेम सुंदर उपवन है फूलों का
रंग बिरंगे पुष्प जो महकाए हैं

ये आँसू आँखों में शशिप्रभा से
बह कर कपोलों पर चमकते हैं
जब याद प्रियतम की आती है
रहते हृदय में ये अग्न लगाए है

दिन चढ़ता है और ढल जाता है
मन का सबर बाँध टूट जाता है
शाम ढले ,रात को चाँद निकले
मन भटके,विरह बहुत सताए हैं

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
1 Like · 200 Views
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