प्रेम पल्लवन
रिश्तें कहाँ अपने रहें वह दूर जाते दिख रहें
अहम् के परिवेश में अमानवता के पालन सीख रहे
जिज्ञासा माया मिलन, प्रेम पारितोषक अब कहा हैं
तृप्त जोगी संतृप्त सुदृढ़ संकल्प साधक अब कहा हैं
रोग जो सिंधु सुता का मोह में पलता रहा हैं
अर्द्ध स्वचालित ज्ञान का प्रसार करता रहा हैं
विश्व में लगभग सभी मनोकामनाएं ईश्वर बनीं हैं
द्रव्य ही सुंदर सजल इच्छाओं में सबसे घनी हैं
सच कहूँ फिर मैं खड़ा होकर जातक बन गया जो
प्रेम के पल्लवन में मैं जो साधक बन गया जो
फिर कभी भी हाथ की रेखाएं मुझसे ना कहें
सार के सजीवता में व्यर्थ कथाएं मुझसे ना कहें
हाँ मैं अराजक तत्त्व हूँ तो त्याग मेरा तुम करों
बाधक तुम्हारे पथ में हूँ तो विराग मेरा तुम करों
मेरे मौन शब्द को दो टूक आकर ना करों
मेरे पद चिन्ह पर चलकर कभी तुम ना मरों
यह राग की रागनी झंझावत में कह रहीं
जननी दुखी रजनी बनावट में कह रहीं
उद्धार मेरा अधिकार मेरा चमन के लाल में
फस गया अनुभव मिलन भी माया जाल में
इंजी. नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)