प्रेम न तो करने से होता है और न ही दूर भागने से प्रेम से छुट
प्रेम न तो करने से होता है और न ही दूर भागने से प्रेम से छुटकारा मिलता है.न हम इसे खत्म कर सकते हैं ये तो भाव हैं अहसास हैं और अहसासों को शब्दों से मिटाया नहीं जा सकता…ये तो तब भी रहते हैं जब हम भी नहीं रहते हैं.. बाकी इनकार, इकरार, स्वीकार, तिरस्कार तो शाब्दिक प्रक्रियाएँ हैं…