प्रेम डगर
इक दूजे को चाहना , कहलाता है प्यार ।
बिना प्यार के जिन्दगी , लगती है बेकार ।।
2.
प्रेम नेम का सार है , प्रेम समन्वय रीत ।
प्रेम मिला जो जीव को , मन भावन संगीत ।।
3.
प्रेम सलीके का अगर , सुख समृद्धि उन्वान ।
प्रेम मन्त्र जीवन भरा , बढ़ें खुशी के गान ।।
4.
प्राणी जीवन में भरे , प्रेम सुखद अनुराग ।
असफल यदि हो जाय तो , प्रेम रोग की आग।।
5.
प्यार अगर पाना चहें , खुद भी करिए प्यार ।
त्याग अहं अरु स्वार्थ को , हो गरिमा इकरार ।।
6.
धन से धन बढ़ता सदा , और ज्ञान से ज्ञान ।
बढ़े प्यार खुद प्यार से , इनमें प्यार महान ।।
7.
रिश्ते में मिठास बढ़े , उतना बढ़ता प्यार ।
पल हर पल मन सोचता , हो उनका दीदार ।।
8.
ढाई आखर प्रेम का , पढ़े हृदय यदि मीत ।
देह न जिसका है अलख, अन्तर्मन रस प्रीत ।।
9.
मन काबा,काशीपुरी , जिस मन बसता प्रेम ।
बजे प्रेम की बाँसुरी , तभी कुशलता क्षेम ।।
10.
प्रेम कृष्ण मीरा बना , है समर्पण मिशाल ।
निराकार से प्रेम यह , अद्भुत और विशाल ।।
11.
प्रेम गोपियों ने किया , सुध बुध गईं भुलाय ।
यदपि प्रेम साकार था , मगर न होश गवाय।।
12.
इहलोक व परलोक का , अलग अलग है प्रेम ।
दोनों में आनंद है , बढ़े त्याग से क्षेम ।।
13.
प्रथम प्यार होता नहीं , होते रहे न चैन ।
खरी ‘ हितैषी ‘ प्रीत हो , तरसे उन बिन नैन ।।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी ( म. प्र .) 451 551