प्रेम के रंग कमाल
प्रेम के अपार
कमाल के रंग हैं
कहीं लाल
कहीं बेरंग हैं,
मिलन के मीठे आंसू
बिछोह के नमकीन हैं
कोई प्रेम से तृप्त
कोई गमगीन है ,
कहीं प्रेम कड़वा
कहीं चटपटा है
मिल गया तो शहद
नहीं तो खट्टा है ,
कहीं प्रेम मुलायम
कहीं कठोर है
कहीं मितभाषी
कहीं मुंहजोर हो ,
किसी के लिए खोटा
किसी के लिए खारा है
किसी को थोड़ा सा
किसी के लिए ढ़ेर सारा है ,
पा गये तो खुश
नहीं तो रूष्ट हैं
इस प्रेम-प्यार से
नहीं कोई संतुष्ट है ,
ये जो प्रेम है ना
लेने में बहुत अच्छा लगता है
इसको देते वक्त तो जैसे
सबका कलेजा फटता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )