प्रेम में इजहार के दिन नहीं होते
भेज रहा हूँ जो मुझे मिला ,
दया, करुणा, प्रेम, प्रवाह.
भीड़ जिसकी आयोजक है.
बहती बन नफरत अथाह.
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बहती है जो ,दो धारों बीच.
आदि प्रवाह अंत अनंतहीन.
जो मिला वो सौंप रहा हूँ .
अपने पास कुछ रखता नहीं.
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बचपन पाया उसे फैलाया.
जग जन ने खूब समाया.
डोडी कलि पुष्प बन खिली.
खूब मिली बढी यौवन छाया.
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यौवन झूले बुजुर्ग बोले सहेजे
नहीं सहजता है,ये अमृतबेला है.
आयोजित कर दिए पीले कर.
ज्वालामुखी कब रूका करते है.
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धूम धड़ाम लपटें, अंबर चढ़ती है.
अच्छे अच्छों की दौलत फीके..
पड़ जाती है, तराजू तौल नहीं पाती
वो है प्रेम वो है प्यार, करो विचार.
डॉक्टर महेन्द्र हंस