प्रेम की सुगंध
कविता…. प्रेम की सुगंध….
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प्रेम सर्वोपरि है,दिल से किया कर यारा।
प्रेम के मोती हैं,समंदर के दिल की धारा।
पर्वत सम बन ज़रा,अडिग होय प्यार द्वारा।
सूर्य ने मानो ये,किया किरण का पसारा।
प्रेम में शक्ति असीमा,प्यार झलके धीमा रे।
हृदय लग्न परमात्म,इसकी जान निलिमा रे।
सर्वोत्तम पक्ष अहं, उभर रंग तालिमा रे।
हँसें असीम लालिम,पायी ज्यों तालिमा रे।
प्रेम उपज सजे रुचि,जगे लग्न अनोखी है।
दिल ने प्यार सुषमा, सपंजी ज्यों सोखी है।
उड़ रही फूल गंध,जगत् गहन विलोकी है।
हरियाली दिखी यूँ,पकी ज्यों रे लोकी है।
सुंदर बदन भाये,नयन को ज्यों है भाता।
हृदय की गलियों में,सुंदरता लिए आता।
तेरे रूप की छवि,मेरे हृदय बिखराता।
चमन मन में ज्यों रे,फूल सम है खिल जाता।
तू प्रेम की टहनी,मेरा प्यार फूलों सम।
जिसकी खुशबू महक,सनम हृदय करती नरम।
मखमली सरिता बह,हृदय करती ज्यों निर्मल।
मन होय आकर्षित,प्यार में प्रेमी ज्यों शामिल।
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राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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