प्रेम की साधना (एक सच्ची प्रेमकथा पर आधारित)
राजन का बचपन पी0ए0सी0 के सरकारी क्वाटरों में बीता था चूँकि राजन के पिता इसी विभाग में हवलदार थे। राजन अब धीरे-धीरे समय किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा था। राजन के सामने वाले क्वार्टर में तीसरी मंजिल पर सुधा नाम की एक सुंदर कन्या रहती थी। उसके पिता भी इसी विभाग में सिपाही थे। राजन और सुधा, दोनों के पिता एक ही विभाग में थे इसलिए ड्यूटियां भी अक्सर साथ ही बाहर जाया करती थीं। इसलिए दोनों आपस में बहुत अच्छे मित्र भी थे।
सुधा और राजन दोनों ही पढ़ने में बहुत तेज थे किंतु दोनों का ही अंतर्मुखी स्वभाव था। घरेलू काम-काज में भी दोनों ही अपने-अपने परिवार का हाथ बटाते थे। उनको देखकर आस-पड़ोसी भी सोचते थे कि काश इन दोनों की जोड़ी होती तो कितना अच्छा होता। परंतु राजन और सुधा के बीच कभी कोई ऐसी बात न सुनी थी। दोनों आपस में बात किये बिना भी एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। इसी बीच ड्यूटी के दौरान एक मुठभेड़ में राजन के पिता शहीद हो गये थे। कुछ समय बाद सरकार द्वारा पिता के स्थान पर राजन को उपनिरीक्षक की नौकरी हेतु संस्तुति की गई। राजन को 07 दिवस के बाद ट्रैनिंग के लिए जाना था। राजन के पिता की मृत्यु के बाद राजन की अनुपस्थिति में सुधा अक्सर राजन के घर आ जाती और मां की बहुत सेवा करती थी। राजन को यह बात मां से पता चली थी।
राजन ने मन ही मन सुधा को अपनी जीवन संगनी बनाने के उद्देश्य से सुधा को एक प्रेम पत्र लिखा और एक किताब में रखकर सुधा तक पहुँचा दिया। राजन ने पत्र में लिखा कि “सुधा! तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो मां अक्सर तुम्हारी चर्चा मुझसे करती है मेरी अनुपस्थिति में तुम घर आकर मां की बहुत सेवा करती हो। इससे मेरी नजर में तुम्हारा सम्मान और बढ़ जाता है। यदि तुम्हारा मेरी जीवन संगिनी बनना स्वीकार हो तो मेरे ट्रैनिंग को जाने से पूर्व ही उत्तर दे देना।….तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा…राजन!”।
सुधा उस पत्र को पढ़कर बहुत खुश हुई। और खुद की सहमति देते हुए राजन को एक पत्र लिखा कि “राजन! मैं भी बचपन से तुम्हारा बहुत सम्मान करती हूँ मैं कभी भी अपने मन की बात तुमसे नही कह सकी। आज तुम्हारा प्रेम पत्र पाकर बहुत खुश हूँ मुझे तुम्हारे द्वारा इजहार का इंतजार था आज से… तुम्हारी और तुम्हारी अपनी….सुधा!” यह लिख ही रही थी की बिल्ली ने रसोई में दूध गिरा दिया। जल्दी-जल्दी में प्रेमपत्र राजन की किताब में न रख सुधा ने अपने स्टूडेंट प्रवीण की किताब में रख दिया। बहुत समय के बाद भी प्रतिउत्तर न मिलने पर राजन, सुधा की असहमति समझ ट्रैनिंग को चला गया। इधर प्रवीण ने सारी कॉलोनी में सुधा और राजन की प्रेम कहानी के चर्चे कर दिये। आनन-फानन में माता-पिता ने सुधा की शादी एक वकील से कर दी। राजन को इसकी भनक तक न लगी।
दृश्य-२
“हेलो! हाँ कहा हो कौशल?” राजन ने गाड़ी में ही फोन लगाकर मित्र से पूछा। ” मैं तो मोदीनगर में हूँ और तू बता कहाँ है आज-कल” कौशल ने उत्तर देते हुए राजन से पूछा। “मैं लखनऊ हूँ आजकल एक जरूरी काम से नोयडा निकल रहा सोचा तुझसे मिलता चलूँ” राजन ने प्रतिउत्तर दिया। “आ जा मेरे भाई! बहुत दिनों से मिले भी नही है आजा! आज बैठते है, सुनील भी लाल कुर्ती इंचार्ज है और नरेश भी कोतवाली सिटी देख रहा है।” कौशल ने राजन को बताया। चारों मित्रों ने कांफ्रेंस पर बात की और एक वार रेस्टोरेंट पर मिलना तय हुआ। सभी तय समय पर प्रस्तावित रेस्टोरेंट में पहुंच गए। साथ ही ड्रिंक आर्डर किया गया और बहुत जल्दी ऑर्डर आ भी गया।
सभी मित्र ड्रिंक लेने लगे गप-शप चलने लगी कुछ ट्रेनिग की यादें, कुछ साथ बचपन में बिताए पल। तभी एक पागल खाना माँगते हुए सामने से गुजरा। “अरे सुन! राजन वह सामने जो पागल दिखाई दे रहा है पता है कौन है?” सामने के फुटपाथ की तरफ इशारा करते हुए वार में बैठे कौशल ने कहा। “मुझे क्या पता” राजन ने लड़खड़ाती जुबान में कहा। कौशल ने फिर कहा कि तुम्हारे क्वाटर के सामने दूसरी मंजिल पर सुधा नाम की मैडम रहती थी, जो छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी, उनका भाई विभोर है। इतना सुनते ही राजन का सारा नशा उतर गया। वह टेबल से उठा और सामने से ब्रेड-टोस्ट लेकर उसके पास पहुँचा। किंतु उस पागल को कुछ भी समझ न थी चाय और टोस्ट खाकर वह आगे बढ़ गया। राजन कुछ देर अवाक खड़े रहकर वापस आ गया।
अब उसे कौशल से सुधा और विभोर के बारे में जानने की बहुत उत्सुकता थी। उसने कौशल के पास जाकर अपने मन की उत्सुकता बयाँ कर दी। राजन की उत्सुकता देख कौशल ने बताया की ये विभोर है सुधा का भाई! तुझे तो पता है ये पढ़ने में बहुत तेज था ही सिविल सेवा परीक्षा के इंटरव्यू में फैल होते ही इसका दिमाग चल गया और आजतक इसी हालत में है “और सुधा!” कौशल को बीच में रोकते हुए राजन ने कहा। तब कौशल ने कहा की प्रवीण को सुधा मैडम के बारे में पता होगा क्योंकि वही ट्यूशन में उनका प्रिय शिष्य था। हो सकता आज भी उनके सम्पर्क में हो। “क्या तेरे पास उसका नम्बर है?” राजन ने कौशल को पुनः बीच में टोकते हुए कहा। कौशल ने कॉलेज के जूनियर से प्रवीण का नम्बर लेकर राजन को दिया। राजन ने बिना देरी किये प्रवीण का नम्बर लगाया और कहा कि प्रवीण मैं ‘राजन भैया’ बोल रहा हूँ। सुधा मैडम के सामने बाले घर में रहता था। प्रवीण ने राजन से अभिवादन व्यक्त करते कुशलता पूछ ली। “प्रवीण! क्या तुम अभी मेरठ आ सकते हो।” राजन ने पूछा। “भैया! रात बहुत हो चुकी है यदि कोई साथ को मिल जाए तो आ सकता हूँ” प्रवीण ने कहा। “विकास लोनी में है मैं उससे कहता हूँ वह तुम्हें लेकर आएगा” इतना कहकर राजन ने फोन काट दिया।
राजन के कहने पर विकास अपने साथ प्रवीण को लेकर मित्रों के पास पहुँचा। “प्रवीण! ये बताओ की सुधा मैडम कैसी है और तुम्हारे पास उनका कोई सम्पर्क सूत्र है क्या?” उत्सुकता दिखाते हुए राजन ने प्रवीण से पूछा। प्रवीण ने बताया की मैडम की शादी बरेली में हुई थी..”क्या..क्या हुआ फिर” राजन ने बीच में टोकते हुआ पूछा। एक दुर्घटना में उनके पति गुजर गए और अपने 8 साल के बेटे को साथ लेकर एकांकी जीवन गुजार रही है। “प्रवीण!क्या तुम मुझे दिखा सकते हो?” पुनः राजन ने कहा। “वैसे तो अब वह किसी से मिलती नही है परन्तु प्रयास अवश्य करेंगे” प्रवीण में कहा। पार्टी खत्म हुई दोस्तों से मिलने की खुशी, सुधा से मिलने की उत्सुकता ने छीन ली थी।
दृश्य-३
रात की योजना के अनुसार अगले दिन बरेली पहुँच गये बहुत देर तक राजेंद्र नगर की गलियों में घूमते रहे। कोई पूछता तो बता देते कि किराये पर मकान लेना है। अगली ही गली में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। प्रवीण और राजन को समय बिताने की जगह न थी इसलिए इन्ही बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने लगे। उन्ही बच्चों में एक बच्चा, जो कि सुधा का था। प्रवीण ने उसे पहचान लिया और राजन को बताया कि जो ऑफ़साइड पर फील्डिंग कर रहा है वही सुधा मैडम का बेटा है। उसे देखकर तो मानों राजन की आँखों में बत्सल्य उमड़ पड़ा हो। कभी एक टक तो कभी नजरें चुराकर राजन उसे देखे जा रहा था ताकि उसे किसी भी तरह का शक न हो। राजन उस बच्चे से दोस्ती बढ़ाने लगा क्योंकि सुधा तक पहुचने का एकमात्र साधन था। खेल खत्म हुआ सभी अपने-अपने घर जाने लगे। राजन और प्रवीण उस बच्चे के पीछे-पीछे चलने लगे और उसके घर तक पहुँच गये। बच्चे ने घंटी बजाई एक अधेड़ सी महिला बाहर आयी राजन ने तुरंत पूछा “मैम! आपके घर कमरा मिलेगा किराये पर”। इतना सुनते ही महिला ने बच्चे को गेट के अंदर लिया और बिना कुछ कहे तेजी से गेट बंद कर दिया। शायद वह राजन को पहचान गयी होगी।
एक मोबाइल नम्बर जो सुधा के बेटे से राजन ने प्राप्त किया था अलग-अलग नम्बरों से मिलाया किंतु “हैलो” से अधिक कुछ सुन न सका। दस वर्षों से अधिक बीत गये मगर सुधा की अमिट छाप दिमाग से ओझल नही होती है
दृश्य-४
इसी समयांतराल में राजन ने पत्नी की बीमारी को देखते हुए दोनों बेटियों की शादी कर दी। बेटा नही होने के कारण दोनों को एक-एक मकान भी दे दिया था केंसर की बीमारी हो जाने के कारण राजन ने पत्नी को खो भी दिया था। इधर सुधा के बेटे ने लव लव मैरिज कर ली थी। उसकी पत्नी बहुत तेज निकली शादी होने के कुछ माह पश्चात ही उसने सुधा को घर से निकाल दिया था।
नवंबर का महीना था राजन, प्रवीण को अपने साथ लेकर अपनी पत्नी की अस्थियां विसर्जित करने हरिद्वार आया था। अस्थियां विसर्जन के पश्चात घाट पर बैठे गरीबों को दान कर रहा था। उनमें से एक भिखारिन अन्य भिखारियों की तरह नही मांग रही थी और राजन से अपनी नजरें बचा रही थी। राजन को वह आंखे कुछ पहचानी सी लगी। वह राजन, प्रवीण से कुछ कह पाता तब तक प्रवीण खुद ही कह उठा “मैम! आप यहाँ! इस हालात में कैसे” कहते ही प्रवीण की आंखों से आँसुओ के झरने फूट पड़े। वह सोच रहा था की सुधा मैम की ये हालत आज मेरी बजह से है। राजन ने सुधा को बिना कुछ कहे अपने बाजुओं में भर लिया मानों वर्षों के प्यासे को पवित्र और निर्मल सरिता बहती हुई मिल गयी हो और उम्र भर उसी घाट पर सुधा के साथ रहने का प्रण कर लिया।
राजन ने प्रवीण को यह कहते हुए घर की चाभियाँ थमा दी कि “अब मेरे पास खोने-पाने को कुछ नही है यही मेरी मंजिल थी जो मुझे अब मिल चुकी है।” आज भी सुधा और राजन आंनदमयी जीवन की चिलम पीते हरिद्वार के घाट पर देखे जा सकते है।
दुष्यंत ‘बाबा’ की कलम से.. साभार
दिनांक 30-12-20
चित्र गूगल से साभार कॉपी