प्रेम की रीत
!! श्रीं !!
आधार छंद शृंगार
(16 मात्रा , त्रिकल के बाद द्विकल, चरणांत गाल)
०००
प्रेम की रीत
०००
छिपा हो जब अंतस में प्यार ।
करे सजनी सोलह शृंगार ।।(१)
०
नयन फिर करें इशारे मौन ।
मूक वे व्यक्त करें अभिसार ।।(२)
०
दिवस जब आये करवा चौथ ।
करे निर्जल व्रत सजनी धार ।।(३)
०
एक दूजे मिल होते पूर्ण ।
इसी से चले सृष्टि संसार ।।(४)
०
निराली बड़ी प्रेम की रीत।
जीतता वह जो जाता हार ।।(५)
०
तोड़ मत देना सुंदर लीक ।
सदा ही करना मृदु व्यवहार ।।(६)
०
‘ज्योति’ लिख नेहीले से छंद ।
गीत से छलके रस की धार ।।(७)
०
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
***