प्रेम की पाती
प्रेम की पाती
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प्रिय ,क्या है प्रेम में निभाना
क्या है मिलना , क्या है उसका दूर जाना
जब उसको छोड़ कर
दूर रह कर उससे
होते हैं उसके साथ के एहसास
तब दूरी क्या और क्या है पास।
प्रेम तो योग है सत्य निष्ठा का
प्रश्न कहाँ उठता है इसमें
अहं और प्रतिष्ठा का
प्रिय, यह प्यार कैसा
लालच – लांछन
भय -झूट – अविश्वास
से मिला -विवाद जैसा
मुझे तुम्हारे प्रति संवेदना
भावुकता की अनुभूति रहती है
इस भाव की भाषा
कदाचित यही कहती है
फूल और काटों के बीच
चुभन के अस्तित्व क्या
जब सुगंध सी प्रीति
दोनों के बीच रहती है
न ही कोई जीत है
न ही है किसी को हराना
कदाचित यही तो है
प्रेम का निभाना , प्रिय …
प्रेम पाती भेज रहा हूँ तुम्हें
जवाब की जगह तुमको है आना ।
– अवधेश सिंह