प्रेम का साक्षात्कार
सोचा चलू आज प्रेम से मिलकर,
ले लूं उनका साक्षात्कार।
पहले तो चौकीदार दिल ने उनकी
नहीं दि इजाज़त हमें।
लाख मनाया दिया रिश्वत,
तब कहीं जा के हुआ समय तय।
नमस्कार, आदान-प्रदान किया,
मैंने अपना पहला सवाल किया।
बर्बाद क्यों होते हैं लोग,
आपके पाले में पड़कर,
ऐसा क्या जादू आता ,
जो कर लेते वश में सभी को।
नाम मेरा प्रेम,देव मेरे कामदेव,
अपनी जाल में फंसाता हूं,
कभी हंसाता तो कभी रूलाता हूं।
मैं कारण नहीं लोगों कि बर्बादी का,
कारण तो दिल उनका,
उनके सभी हालत का।
और कोई है सवाल,
जिसमें चाहिए आपको मेरा स्पष्टीकरण,
अरे पुछो जी हम न मानते बुरा किसी का,
अच्छा,तो यह बताइए,
प्रेम आप पवित्र है या पाप?,
अलग-अलग लोगों पे ,
अलग-अलग परिभाषा है।
वैसे मैं तो पवित्र हूं,पर
कुछ ने कर दिया दुषित मुझे।
दण्ड देते आप उन्हें आपसे दिल लगाने का,
फिर भी लोग आपको इतना क्यों चाहते हैं?
सब्र कि लेता परीक्षा मैं ,
अपने चाहने वालों का,
जो हो जाते सफल गुण गाते मेरा,
जो भाग जाते राह में मुझे छोड़कर,
वे धोखा का नाम दे जाते।
अब बस कीजिए साहब,
मुझे जाना अपनी महबूबा के पास,
आप भी चलिए, किसी से
आपका भी दिल जोड़ देता हूं।
बहुत शुक्रिया मोहब्बत आपका,
पर हम प्रसन्न अपने जीवन से ही।