प्रेम का पुजारी हूं, प्रेम गीत ही गाता हूं
प्रेम का पुजारी हूं, प्रेम गीत ही गाता हूं
प्रेम का ही खोज में ,लंदन घुमआता हूं
प्रेम का दीवाना हूं, प्रेम नही ढुंढ पाता हूं
प्रेम का ही वास्ते,जग ठोकर भी खाता हूं।।
भारत मां के माटी मां , प्रेम मिलता है कुछ नेक
बगिया तो भरमार है,पर गुलाब खिला है एक।
जाति पंथ अलग है,पर हिंदुस्तानी ही पाता हू
भारत भूमि ममता की मुरत, प्रेम गीत ही गाता हूं
प्रेम का दीवाना हूं मैं,केवल प्रेम यहीं तो पाता हूं।।
भारत मां केत्याग तपस्या पर, अपना शीश झुकाताहूं।
प्रेम का पुजारी हूं मैं,,केवल प्रेम गीत ही गाता हूं
भारत मां के चरणों में,अपना शीश झुकाती हूं।।