प्रेम का दीप, नेह का पुष्प
प्रेम का दीप, नेह का पुष्प
कब जलेगा कब खिलेगा ह्रदय में हे राम !
कब तलक अपनी सुरभि को आप खोजेंगे सुमन,
कब नाभि की मणिगंध पायेगा हिरन अविराम,
और कब तक मेघ देखेगा मयूरा मौन,
आस में विश्वास छोड़ेगा अधूरा कौन,
हो चुका कितना अधीर व्यथित पथिक,
पूर्ण हो “अनुराग” मार्ग तब मिले विश्राम !!