प्रेमनगर
प्रेमनगर (स्वर्णमुखी छंद/सानेट )
मैं रहता हूँ प्रेमनगर में।
सबके दर पर दस्तक देता।
सब की खोज खबर नित लेता।
बैठा रहता आत्म जिगर में।
सीखा सबसे मिलजुल रहना।
सदा सत्य ही गेह बना है।
स्नेह पंथ ही देह बना है।
सीखा कड़वी बातेँ सहना।
सत्कर्मों का ध्वज लहराता।
अपनी राह सहज है प्यारी।
अपनी धरती राजकुमारी।
सद्भावन का भुज फहराता।
प्रीति भक्ति का सत्य पुजारी।
मेरी जगती मधुरिम न्यारी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।