प्रीत बरसात बाकी है
प्रीत बरसात बाकी है
प्रीत बरसात बाकी है
प्रीत मनुहार बाकी है
विरह की धुन्ध छायी
प्रिय की पुकार बाकी है
दहका दहका अंग है
बहका बहका मन है
यौवन की बदरी छाई
प्रीत अलंकार बाकी है
अम्बर आकुल दिखता
रह रह कर गरजता
शून्य शोरगुल करता
प्रीत प्रकार बाकी है
घनन घनन घन घोर
बूँदें गिरती है घन से
मन बीथी शीत नीर से
प्रिय संसार बाकी है