*प्रीत पराई की बुरी पीर घड़ी*
प्रीत पराई की बुरी पीर घड़ी
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तुम नहीं तो तेरी याद सही,
कुम्हलाई है हर कली खिली।
भूले न भुलाये भूली बिसरी,
याद है हर बात जो भी कही।
लम्हा-लम्हा है सुनसान तन्हाँ,
लता सूखी पड़ी खड़ी-खड़ी।
पतझड सावन भी बहार गई,
तेरे जाने के चलो बाद सही।
छुई-मुई छुहन मदमस्त मस्त,
प्रेम मदिरा है अंग-अंग चढी।
कोई रंग न भाता मनसीरत,
प्रीत-पराई की बुरी पीर घड़ी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)